तूं है तो मैं हूँ - मातृ दिवस कविता

Anonymous
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तूं है तो मैं हूँ।
वरना मैं क्या शह हूँ। 
तूं है तो मैं हूँ।

उंगली पकड़े छोड़े न जो,
पिता की बात मोड़े न जो।
दादी, दोस्त, बहन बन जाती जो,
उस चिड़िया बेटी की चह चह हूँ।
तूं है तो मैं हूँ।
वरना मैं क्या शह हूँ। 
तूं है तो मैं हूँ।

राखी और दूज का आधार है,
मुस्कुराते हर तोहफा स्वीकार है।
लड़ती, झगड़ती जो अधिकार से,
भाई के सिर ताज बन जाती यूं हूँ,
तूं है तो मैं हूँ।
वरना मैं क्या शह हूँ। 
तूं है तो मैं हूँ।

नए घर की शोभा बन जाती है,
सारे रिश्ते पति पर लुटा जाती है।
बहु, भाभी, ताई, चाची बन जाती है,
पत्नी बन हर क्षण श्वास मैं हूँ।
तूं है तो मैं हूँ।
वरना मैं क्या शह हूँ। 
तूं है तो मैं हूँ।

घर मे दोस्त, टीचर बन जाती है,
बेटा, ऐजी, माई मैं सुनाती है।
डांटना, पढ़ाना, संस्कार सिखलाती है,
मां सुगंध फूल की हर आँगन आती है,
उस फूल में दादी, नानी की महक हूँ,
तूं है तो मैं हूँ।
वरना मैं क्या शह हूँ। 
तूं है तो मैं हूँ।

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