योग दिवस और आज़ादी के अमृत महोत्सव पर लिखा योग गीत

Anonymous
0
जागृत हो, ज्योति ऐसी, 
कि जागृत हर एक मन हो,
योग धारा, बह रही है, 
अब स्वस्थ हर एक, जन हो।

मनो वृति निरोध हो, 
कर्मों में  कौशल हो।
आज प्राकृति, कह रही है,
ज्ञान पुष्प, उत्पन्न हो। -2 


ऋषियों की, विद्या है यह, 
वेदों का पावन, सार है।
हृन्यगर्भ, पतञ्जलि, 
ऋषि घेरण्ड, आधार है। 

उपचार यही , यही संकल्प है,
सुस्वास्थ्य का विकल्प है।
नमो नमामि योग विद्या,
जिससे, यह काया कल्प है।-2

आओ सखियों आयो बन्धु,
बढ़े आगे यह, प्रण लिए,
हृदय में राष्ट्र, भक्ति हो,
सरस्वस्व राष्ट्र को, अर्पण किये।

पृथ्वी, राणा, शिवा जी राजे,
स्वयं में आज उत्पन्न किये,
भगत सिंह, आज़ाद , सुभाष,
हो हर आंगन,  माई कहे। -2 

जागृत हो, ज्योति ऐसी, 
कि जागृत हर एक मन हो-2
योग धारा, बह रही है, 
अब स्वस्थ हर एक, जन हो। -2
Tags

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(I Agreed !) #days=(10)

Our Newspaper uses cookies to provide you a secure and steady user interface. Learn More
Accept !
To Top